उर्दू भाषा कभी भी समाप्त नहीं हो सकती,क्योंकि यह हर किसी के दिलों में रची बसी है: प्रो अख्तरुल वासे

-उर्दू जबान मकबूल भी, मजलूम भी नमक पुस्तक का हुआ विमोचन

नई दिल्ली। उर्दू भाषा कभी भी समाप्त नहीं हो सकती है क्योंकि यह हर किसी के दिलों में रची बसी है। जिस भाषा में माएं अपने बच्चों को लोरियां सुना कर सुलाती हैं वह भाषा अमर हो जाती है। उर्दू भाषा को लेकर जो चिंताएं व्यक्त की जाती हैं वह बेबुनियाद है। उक्त विचार जाने माने इस्लामिक विद्वान पदमश्री प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने उर्दू डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन के जरिए दरियागंज में उर्दू जबान मकबूल भी मजलूम भी नमक पुस्तक के विमोचन समारोह में व्यक्त किया है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता मीम अफजल ने की और मुख्य अतिथि के तौर पर प्रोफेसर सैफर रसूल, माजिद देवबंदी, वरिष्ठ पत्रकार मासूम मुरादाबादी मौजूद थे। मंच का संचालन पुस्तक के लेखक वरिष्ठ पत्रकार सोहेल अंजुम ने किया। प्रो अख्तरुल वासे ने कहा कि उर्दू भाषा को लेकर हमेशा यह चिंता जताई जाती है कि यह समाप्त हो जाएगी लेकिन यह सही नहीं है। इस भाषा को कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता है। हां इस बात की चिंता जरूर की जा सकती है कि इस भाषा के पढ़ने लिखने वालों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। इस मौके पर मीम अफजल ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि  टेक्नोलॉजी के दौर में हमें उर्दू भाषा को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ले जाने की जरूरत है। उर्दू अखबारों की दिन-प्रतिदिन घटती स्थिति को देखते हुए हमें वेबसाइट के जरिए इसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाना चाहिए। अगर हम ऐसा करते हैं तो  हमारे उर्दू अखबार को दुनिया भर में पढ़ा जा सकता है। इस मौके पर उर्दू डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन के अध्यक्ष डॉ सैयद अहमद खान ने अपने जरिए संकलित की गई इस पुस्तक  के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पत्रकार बुद्धिजीवी  मौजूद थे। कार्यक्रम को सफल बनाने में इमरान कन्नौजी, अताउर्रहमान अजमली, हकीम आफताब आलम आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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