34वां अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता सम्मेलन का समापन

-सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रमुख और मानव एकता सम्मेलन के अध्यक्ष संत राजिन्दर सिंह जी महाराज की अध्यक्षता में हुआ सम्मेलन

नई दिल्ली। सावन कृपाल रूहानी मिशन के प्रमुख और मानव एकता सम्मेलन के अध्यक्ष संत राजिन्दर सिंह जी महाराज की अध्यक्षता में 34वें अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता सम्मेलन कृपाल बाग, दिल्ली़ में हुआ। तीन दिवसीय सम्मेलन के दौरान दुनिया के कोने-कोने से आध्यात्मिक जिज्ञासु और अनेक प्रतिनिधि इकट्ठे हुए, जिन्होंने मानव एकता को आध्यात्मिकता के द्वारा कैसे अनुभव किया जा सकता है, इस विषय पर ध्यान दिया।
सम्मेलन में हजारों संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने ध्यान-अभ्यास के ज़रिये अपने जीवन के उद्देश्य को अनुभव करने के बारे में बताया कि यह मानव शरीर एक सुनहरा मौका है, जिसमें कि हम अपने आपको जान सकते हैं और पिता-परमेश्वर को पाकर उनका अनुभव कर सकते हैं ताकि हम अपने जीवन के मुख्य उद्देश्य जोकि पिता-परमेश्वर को पाना है, को इसी जीवन में पा सकें।


इस सम्मेलन का आयोजन पिछली शताब्दी के महान संत परम संत कृपाल सिंह जी महाराज के 129वें प्रकाश उत्सव के अवसर पर किया गया, जिन्होंने अध्यात्म की शिक्षा को दुनिया के कोने-कोने में फैलाया।
समापन समारोह की शुरूआत में आदरणीया माता रीटा जी ने विदेशी भाई-बहनों के साथ मिलकर गुरु अर्जुन देव जी महाराज की वाणी से “संत जना मिल हर जस गायो” शब्द का गायन किया।


34वां अंतर्राष्ट्रीय मानव एकता सम्मेलन जोकि मानव एकता और एकीकरण का प्रतीक है, इस अवसर पर संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने अपार जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि, “इस सम्मेलन में आज पूरी दुनिया से हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए हैं। एक ऐसी जगह जहाँ पर सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है। चाहे हम अलग-अलग धर्मों से हो सकते हैं लेकिन हम सब एक ही पिता-परमेश्वर की संतान हैं। हम सच्चे मायनों में आत्मा हैं जिसका अनुभव हम ध्यान-अभ्यास के द्वारा अपने अंतर में प्रभु की ज्योति और प्रेम के साथ जुड़कर कर सकते हैं।”
महान आध्यात्मिक गुरु परम संत कृपाल सिंह जी महाराज की शिक्षाओं को याद करते हुए संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ने कहा कि, “परम संत कृपाल सिंह जी महाराज पूर्ण गुरु थे, जिन्होंने हम सबके अंदर प्रभु-प्रेम की चिंगारी को जलाकर हमें हमारे जीवन के मुख्य उद्देश्य को पाने का रास्ता दिखाया। उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप लाखों लोगों ने रूहानियत के रास्ते पर चलते हुए अपने जीवन के मुख्य उद्देश्य को पूरा किया।”
उन्होंने आगे कहा कि, “परम संत कृपाल सिंह जी महाराज अक्सर कहा करते थे कि, “इंसान अपने आपको जान।” हम यहाँ इस संसार में बाहर की दुनिया की जानकारी पाने के लिए नहीं बल्कि अंदर की दुनिया के प्रेम, प्रकाश और खुबसूरती को अनुभव करने के लिए भेजे गए हैं। हम अपने अंतर में प्रभु के प्रेम का अनुभव कर सकते हैं जोकि हमें अपने सच्चे घर यानि पिता-परमेश्वर से एकमेक कर देगा। परम संत कृपाल सिंह जी महाराज ने हम सभी को दिव्य-ज्ञान का मार्ग दिखाया। हमें चाहिए कि हम उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में ढालते हुए जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करें।
इस तीन दिवसीय सम्मेलन में 4 फरवरी को ‘प्रेम और एकता के पुल का निर्माण,
5 फरवरी को ‘ध्यान-अभ्यास : अनंत खुशियों की कुंजी’ और 6 फरवरी को ‘कृपाल’ : दिव्य-ज्ञान के महासागर’ विषयों पर सेमिनारों का आयोजन किया गया। जिसमें अनेक धर्मों के धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं ने आध्यात्मिकता और मानव एकता पर अपने विचार पेश किये।
श्री श्री भगवान आचार्य जी, स्वामी देवेन्द्रानन्द गिरि जी महाराज और आदरणीय फादर बेंटो रोड्रिग्ज़ ने कहा कि इस प्रकार के सम्मेलन पूरी मानव जाति को मानव एकता और आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग दिखाते हैं। परम संत कृपाल सिंह जी महाराज स्वयं प्रभु के रूप थे, जिन्होंने लाखों लोगों को जीते-जी प्रभु का अनुभव कराया।
निजामुद्दीन औलिया दरगाह के प्रमुख सैयद अहमद निज़ामी साहब ने अपने संदेश में कहा कि पूरी दुनिया में इस मिशन जैसी कोई जगह नहीं है जहाँ आध्यात्मिक उन्नति की शिक्षा सच्चे मायनों में दी जाती है। अपने जीवन के मुख्य लक्ष्य को पूरा करने के लिए हमें एक पूर्ण गुरु की आवश्यकता है। परम संत कृपाल सिंह जी महाराज और संत राजिन्दर सिंह जी महाराज जैसे महापुरुष हमारे सामने आध्यात्मिकता की जाती-जागती मिसाल हैं।
सम्मेलन में विदेशों से आए वक्ताओं में स्वीट्ज़रलेंड से आए माईकल ग्रेयसन, कोंगो से आए करीम कपेला, अमेरिका से आए ब्रियान वाटरलू, आस्ट्रिया से आई बहन डा. मार्ग्रेट ज़र्नी, इक्वाडोर से आए जुआन नुनेज़ और कोलंबिया से आए केटेलिना गुटेरेज़ शामिल थे। जिन्होंने परम संत कृपाल सिंह जी महाराज के दयामेहर और आशीर्वाद के बारे में बताया कि किस प्रकार उनका विश्वव्यापी संदेश “एक बनो, नेक बनो और नेकी करो” आज सारी मानवता के लिए रूहानियत का मार्ग रोशन कर रहा है।
सम्मेलन में जगतगुरु विश्वकर्मा शंकराचार्य स्वामी दिलीप योगी जी महाराज, महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद जी महाराज, ज्ञान देव जी महाराज, श्री रवि प्रपन्नाचार्य जी महाराज, स्वामी प्रेमानंद जी महाराज, रबी एजेकिल इज़ाक मालेकर, विवेक मुनि जी महाराज और संपूर्णानंद चिदाकाशी जी महाराज आदि वक्ता के रूप में मौजूद थे।
यहूदी समाज के रबी एजेकिल इज़ाक मालेकर ने अपने संदेश में कहा कि इंसान को प्रभु ने अपने ही रूप में बनाया है। जिसका अनुभव हम ध्यान-अभ्यास के ज़रिये अपने अंतर में कर सकते हैं। स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि किसी पूर्ण गुरु के मार्गदर्शन में ध्यान-अभ्यास के द्वारा हम अपने अंतर में प्रभु का अनुभव कर सकते हैं।
सम्मेलन के अंत में विभिन्न धर्मों के धर्माचारियों द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसे देश-विदेश से हजारों की संख्या में आए सभी प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया कि हम सब संतों के दिव्य-ज्ञान से अपने जीवन को रोशन करेंगे तथा मानव एकता और दिव्य-प्रेम की भावना को बढावा देंगे।
सम्मेलन के दौरान सावन कृपाल रूहानी मिशन की ओर से 36वें मुफ्त नेत्र जाँच और मोतियाबिन्द ऑपरेशन शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें नेत्र विशेषज्ञों द्वारा 2480 मरीजों की आँखों की मुफ्त जाँच की गई, जिसमें 1435 मरीजों का मोतियाबिन्द का मुफ्त ऑपरेशन नौएडा के प्ब्।त्म् भ्वेचपजंस में किया गया।
इसी अवसर पर 59वें रक्तदान शिविर में 268 भाई-बहनों ने स्वेच्छा से रक्तदान किया। सम्मेलन के दौरान विभिन्न देशों से आए लगभग 250 प्रतिनिधियों व भारत के विभिन्न भागों से आए हजारों लोगों ने हिस्सा लिया।

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